शरीर से खुस्बु उतरी नहिँ
कोई दिल से उतर गया
इश्क इश्क करके जेहेन
यो हमे कहाँ ले आया
इश्क इश्क करके जेहेन
यो हमे कहाँ ले आया
शरीर को सम्झो
शरीर कुछ ना लगे
मन को सम्झो
मन ही सब कुछ लगे
हो सकता है तुझे सिर्फ
हमारी ही याद नहीं आयी
किसीको तो याद की होगी कभी
तेरा भी दिल तो होगा ही
तू अगर होती तो इश्क़ को बयान कर्ने के लिए
हमे तारो से बाते नहीं कर्नी पढती
चांद के माथे पर झूटमुट का टीका लगाके
उसे अपनी दिलरुबा करार नहीं कर्नी पढती
तू अगर होती नजदीक तो जाना
गगन को देखकर बसर नहीं होती रात
तू अगर होती पास तो
दिल यूँही बेहेल जाता
बाहाने ढूँढ़नेमे वक्त जाया नहीं होती ...
लोग मिलते हैं विछडते हैं और एक बार फिर मिलते हैं
बस हम है कि जिस्को ये रीवयत कभी रास नहीं आइ
पृथ्वी का आकार कोही पुछे तो मैं
बेझिझक सपाट केहेदु
रुक् रूक् के चलती रही गाडी
अकेले ही मैं उसको चलाता रहा
सोचा था देर से हि सही
मगर पहुचुँगा अपनी मंजिल पर
सबकुछ ठिक ही चल रहा था पर
सायद मंजिल को मेरी तकलीफ बर्दास नहीं हुई
डरा हुए आदमी जेसै
उछलके भागा हे कहीं
दिल ना तोड्ने कि कसम खाई थी हमने
इसी वजह जवानी भर खुद टूटटे रहे
ये मनालेगा हमे ऐसा सोच्थे थे सायद
इसलिए बेबजा हुमसे लोग रुठते रहे !!
जो यादें दी थी तुमने मुझे
उन यादों ने सिर्फ इश्क़ होने की तसल्ली दी
इश्क़ का एहसास दिया नहीं कभी
में भागा नहीं हूँ छोड़ आया हूँ वो गल्लिया
जहां तेरी यादें थी परछाईं थी
और जहाँ हम थे
तुझमे इश्क़ को बहुत ढूँढ़के थक कर
कहीं और उसको ढूंढ़ने निकला हूँ अब
पता नहीं लौटूंगा भी या नहीं
बस अपनी यादों से कहना
इंतज़ार ना करे मेरा
नाकामियाब ही सही मगर
इश्क़ के लिए
इतना फ़र्ज़ तो बनता है तुम्हारा
मेरा अन्य कविताहरु सुन्नका लागि तलको लिङ्कमा जानुहोला
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